रेड लाइट एरिया की सड़क पर खड़े खड़े अपने पर कोफ्त हो रही थी। फोटो ग्राफर का इंतजार करते करते फोटोग्राफर पर भी गुस्सा आ रहा था जो समय न आने के लिए मशहूर हो चुका था। मेरे पास से एक रिक्शा गुजारा जिस पर तीन लड़के जा रहे थे। उम्र कोई दस से गयारह साल। नजरें जवान होने को मचल रही थीं। तीनों की नजरें कोठों की खिडकियों से ग्राहकों को बुलाने वालियों पर लगी हुईं थी। रिक्शा जाम में रूका तो बीच वाले मोटे गालों वाले लड़का ने कहा, चलती क्या खंडाला। उसकी बात सुन कर खिड़की से झुक कर लगभग आधी लटकी सी नेपालन बोली, जा पहले मां का दूध पी कर आ। ऊपर आ जाऊं क्या ---- भूख लगी है--- तभी जाम खुला और वे तीनों लड़कों का रिक्शा भी आगे बढ़ गया लेकिन मैं गुस्से में वहीं खड़ी थी। तभी मेरा फोटोग्राफर भी मुझे दिख गया, शायद वो भी इसी जाम में फंसा हुआ था। वैसे भी इस सड़क में अकसर जाम लगता रहता है।
कुछ तो ध्यान रखा करो, मैंने फोटोग्राफर से कहा।
देख रही हो मैडम, कितना जाम लगा हुआ है। तभी महिला संगठन की महिलाएं भी मुझे दिख गयी। उनमें से एक बोली, चलो आशा को कोठे पर चलते हैं। वहीं लड़कियां अन्ना की फोटो के सामने पूजा कर रही हैं। महिला संगठन की कार्यकर्ता फटाफट कोठे की सीड़िया चढ़ गई लेकिन मेरा फोटोग्राफर मेरे से पहले कोठे की सीड़िया चढ़ने का साहस नहीं कर पाया।
उसकी कमजोर हिम्मत देख कर मैंने की बेहद संकरी सीड़ियां चढ़ना शुरू किया। मेरा बैग बार बार सीड़ियों की दीवार से लड़ रहा था जैसे मेरा मन मुझ से लड़ था।
पीछे पीछे एक दो और भी फोटोग्राफर थे। एक रिपोर्ट भी था। इतनी भीड़ देख कर आशा बिदक गई। महिला संगठन वालियों से बोली, मैंने आपसे कहा था, आप केवल मैडम को ले कर आना।
और मैडम पिछली बार आपने भी मेरे बेटी के बारे में लिख दिया था कि मेरी बच्ची देहरादून के वेल्हम स्कूल में पढ़ रही है। आपको पता है, उसके बाद मुझे उसे वहां से हटा कर चेन्नई भेजना पड़ा था। आपने खबर में कुछ दलालों के नाम खोल दिए थे, मुझे लगा कि वे मेरी बेटी तक न पहुंच जाएं।
मैने पूछा, तेरे बेटे का एमबीए पूरा हो गया क्या ?
आशा मेरे कान में बोली, मेडम, उसकी बहुत अच्छी नौकरी लग चुकी है। मैंने कहा, तो फिर निकल जा इस दलदल से।
मेरे बात का जवाब देने के बजाए आशा ने इशारा किया, मैडम लड़कियों ने अन्ना टोपी लगा ली है। वे अन्ना की फोटो के सामने पूजा शुरू कर चुकी हैं।
कोठे के मुख्य कक्ष में बहुत सारे भगवान तस्वीरों में से देख रहे थे। एक ऊचे आले में दो पैरों का चित्र रखा हुआ था जिसके आगे चिराग जल रहा था। भगवान के चित्रों की बगल में एक भरपूर जवान नतृकी का गोल्ड प्लेटेड चित्र भी दिखायी दिया जिसका सरका हुआ आंचल उसे और भी जिंदादिल बता रहा था।
आशा मेरे पास आ कर खड़ी हो गई ताकि मैं तवायफ के जीवन में ज्यादा न झांक सकूं। उन्होंने कपड़े तो पूरे पहना दिए हैं या वे अपनी छोटी छोटी टॉप और जींस में हैं। मैंने पूछा।
अरे नहीं, उन्होंने दुप्पटे में अपने को ढका हुआ है।
फोटोग्राफर फटाफटा फोटो खीच रहे थे।
मुझे उन्हें देखना अच्छा नहीं लगा रहा था। वे दस लड़कियां अन्ना की टोपियां पहन कर अन्ना की पूजा कर रही थी लेकिन वहीं दूसरी कोठरी में बक्सा अपने तीन दिन के बच्चे को गोद में ले कर बैठी थी। उसकी दूसरी सखियां नन्हे फरिश्ते को पाउडर लगा रही थीं । मेरा गोविंदा , मेरा कान्हा, कह कह कर उसे पुचाकर रही थी। बक्सा ने बताया ये जन्माष्ठमी के दिन पैदा हुआ था, ठीक वैसे ही तेज बरसात और आधी रात में । यह कह कर मुश्किल से 14 -15 साल की बक्सा ने नन्हें गोविंद को सीने से लगा लिया। उसके पीले चेहरे पर ममता चमकने लगी।
मैंने कोठे की मालकिन आशा से पूछा , गोविंद का पिता का मालूम है , कौन है। आशा बोली, यहां सब इसके पिता आते हैं।
एक पल को लगा, मेरा सवाल ही गलत है।
कुछ तो ध्यान रखा करो, मैंने फोटोग्राफर से कहा।
देख रही हो मैडम, कितना जाम लगा हुआ है। तभी महिला संगठन की महिलाएं भी मुझे दिख गयी। उनमें से एक बोली, चलो आशा को कोठे पर चलते हैं। वहीं लड़कियां अन्ना की फोटो के सामने पूजा कर रही हैं। महिला संगठन की कार्यकर्ता फटाफट कोठे की सीड़िया चढ़ गई लेकिन मेरा फोटोग्राफर मेरे से पहले कोठे की सीड़िया चढ़ने का साहस नहीं कर पाया।
उसकी कमजोर हिम्मत देख कर मैंने की बेहद संकरी सीड़ियां चढ़ना शुरू किया। मेरा बैग बार बार सीड़ियों की दीवार से लड़ रहा था जैसे मेरा मन मुझ से लड़ था।
पीछे पीछे एक दो और भी फोटोग्राफर थे। एक रिपोर्ट भी था। इतनी भीड़ देख कर आशा बिदक गई। महिला संगठन वालियों से बोली, मैंने आपसे कहा था, आप केवल मैडम को ले कर आना।
और मैडम पिछली बार आपने भी मेरे बेटी के बारे में लिख दिया था कि मेरी बच्ची देहरादून के वेल्हम स्कूल में पढ़ रही है। आपको पता है, उसके बाद मुझे उसे वहां से हटा कर चेन्नई भेजना पड़ा था। आपने खबर में कुछ दलालों के नाम खोल दिए थे, मुझे लगा कि वे मेरी बेटी तक न पहुंच जाएं।
मैने पूछा, तेरे बेटे का एमबीए पूरा हो गया क्या ?
आशा मेरे कान में बोली, मेडम, उसकी बहुत अच्छी नौकरी लग चुकी है। मैंने कहा, तो फिर निकल जा इस दलदल से।
मेरे बात का जवाब देने के बजाए आशा ने इशारा किया, मैडम लड़कियों ने अन्ना टोपी लगा ली है। वे अन्ना की फोटो के सामने पूजा शुरू कर चुकी हैं।
कोठे के मुख्य कक्ष में बहुत सारे भगवान तस्वीरों में से देख रहे थे। एक ऊचे आले में दो पैरों का चित्र रखा हुआ था जिसके आगे चिराग जल रहा था। भगवान के चित्रों की बगल में एक भरपूर जवान नतृकी का गोल्ड प्लेटेड चित्र भी दिखायी दिया जिसका सरका हुआ आंचल उसे और भी जिंदादिल बता रहा था।
आशा मेरे पास आ कर खड़ी हो गई ताकि मैं तवायफ के जीवन में ज्यादा न झांक सकूं। उन्होंने कपड़े तो पूरे पहना दिए हैं या वे अपनी छोटी छोटी टॉप और जींस में हैं। मैंने पूछा।
अरे नहीं, उन्होंने दुप्पटे में अपने को ढका हुआ है।
फोटोग्राफर फटाफटा फोटो खीच रहे थे।
मुझे उन्हें देखना अच्छा नहीं लगा रहा था। वे दस लड़कियां अन्ना की टोपियां पहन कर अन्ना की पूजा कर रही थी लेकिन वहीं दूसरी कोठरी में बक्सा अपने तीन दिन के बच्चे को गोद में ले कर बैठी थी। उसकी दूसरी सखियां नन्हे फरिश्ते को पाउडर लगा रही थीं । मेरा गोविंदा , मेरा कान्हा, कह कह कर उसे पुचाकर रही थी। बक्सा ने बताया ये जन्माष्ठमी के दिन पैदा हुआ था, ठीक वैसे ही तेज बरसात और आधी रात में । यह कह कर मुश्किल से 14 -15 साल की बक्सा ने नन्हें गोविंद को सीने से लगा लिया। उसके पीले चेहरे पर ममता चमकने लगी।
मैंने कोठे की मालकिन आशा से पूछा , गोविंद का पिता का मालूम है , कौन है। आशा बोली, यहां सब इसके पिता आते हैं।
एक पल को लगा, मेरा सवाल ही गलत है।