तुम मेरे परिंदे हो
तुम्हारा घोंसला मुझे आज भी याद
मैंने तुम्हें उड़ना सिखाया
तुम उड़े
लंबी उड़ान पर
लौटे नहीं
क्योंकि
तुम नहीं सीखे
कैसे लौटते हैं
तुम्हारा घोंसला मुझे आज भी याद
मैंने तुम्हें उड़ना सिखाया
तुम उड़े
लंबी उड़ान पर
लौटे नहीं
क्योंकि
तुम नहीं सीखे
कैसे लौटते हैं
4 टिप्पणियां:
मैं तो यही कहूंगा -नीड़ का निर्माण फिर फिर !!
क्योंकि
तुम नहीं सीखे
कैसे लौटते हैं
--आह्ह्!! काश सीख लिया होता-यही अफसोस हरदम रहता है. बहुत गहरी रचना है. बहुत बहुत बधाई.
आज आपके लेखन की याद आई तो आपके इस ब्लॉग पर चला आया, देखा तो कुछ नया नहीं लिखा है आपने कई दिनों से.. प्लीज़ कुछ नया लिखे जरुर. आपके शब्दों का जादू दिल में उतरता है . जैसे इस कविता ने किया है .. काश !!!!!
बधाई !!
आभार
विजय
-----------
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
एक टिप्पणी भेजें