किनारे पर खड़े रह कर
खुद को दरिया में ढूबते देखा
उस लम्हे को भी किश्ती में बैठे देखा
जो अभी अभी मेरे साथ
किनारे पर खड़ा था
खुद को दरिया में ढूबते देखा
उस लम्हे को भी किश्ती में बैठे देखा
जो अभी अभी मेरे साथ
किनारे पर खड़ा था
दुनिया के रंग सब कच्चे हैं, इन्हें उतर जाने दो.... ये बौछार गुजर जाने दो, ये मौसम गुजर जाने दो.... मौसम की आदत पर न जाओ, इसे तो बदलना ही था.... वो पल...... वो कुछ पल, बस उन्हें याद रखना