मुझे लग रहा है कि रिपोर्टिंग और घर के कामों के बाद जो समय मैं ब्लागिंग में लगाती रही हूं, ये अब आपको मेल करने में लगेगा। यानि के आप केसे आ कर मेल चैक किया तो आपकी मेल मिली। पढ़ कर अच्छा लगा। मन में जल्दी हो रही है, और बातें आप से करने के लिये। मैं आपको फिर अमृता और इमरोज के पास लाना चाहती हूं। मैं भी बचपन से ही अमृता को पढ़ती आ रही हूं। उनकी रसीदी टिकट की बातें मैंने अपनी जिंदगी से कई बार सांझी की हैं। मसलन, आगे बढ़ने वाली महिलाओ की दिक्कतें, उनकी राह के रोड़े, उनकी ओर देखने वाली नजरें, और तो और अपने कलीग और संग काम करने वालों की पित्नयों की नजरें, क्या क्या कहूं? लगता है जैसे उन्होंने जो भी सहन किया बस कागज पर उतार दिया , चाहे वो बंटवारे के समय महिलाअों पर होने वाले अपमान की बात हो जिसे उन्होंने ने ´अज कबरों विचों बोल ` में कहा, या कविायों के मंच पर में अपने सहयोगियों की बीवियों की फिब्तयां हों। वे सदा ही सच के साथ रही ,सच कहती रहीं। ये काफी कठिन तो है ही साथ ही कुछ मायनों में ´अपनों` के लिये बुरा भी। इसको आगे चर्चा में लायेंगे। फिर भी वह सच्ची लेखिका थी, उन पर पंजाब को ही नहीं समाज के उन लोगों को मान रहेगा जो सच की कदर कर उसे पचाना जानते हैं। उनकी इतनी जलती और चुबने वाली बातों से ही मेरे मन में उनसे मिलने का ख्याल आया। अपने बारे में सच को भी उन्होंने खूब लिखा। इमरोज के स्कूटर के पीछे बैठ कर उसकी पीठ पर साहिल का नाम उंगलियों से लिखते रहना। उस हाल में इमरोज का प्रेमण्ण्ण्ण्ण्ण्ये भी कठिन ही होगा इमरोज के लिये अरे मैं क्हां पहुंच गई? बाकी की बातें डिनर के बाद आपके मेल के इंतजार में
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2 टिप्पणियां:
ऐसे लोग सदियों मे एक बार पैदा होते है ओर बिरले भी.....
रुहानी प्यार का ज़िक्र एक अजीब से नशे में डाल देता है.
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