दुनिया के रंग सब कच्चे हैं, इन्हें उतर जाने दो....
ये बौछार गुजर जाने दो, ये मौसम गुजर जाने दो....
मौसम की आदत पर न जाओ, इसे तो बदलना ही था....
वो पल...... वो कुछ पल, बस उन्हें याद रखना
रविवार, 27 जुलाई 2008
कौन छिपा हुआ है?
मन की झील में जिस तरह चांद सूरज उतरते हैं एक आकार भी उतर आता है उस झील में कई बार सोचा है देखूं नजरें गढ़ा कर आकार में कौन छिपा हुआ है मगर हर बार वह कभी चांद बनता है तो कभी सूरज कई काफिले इधर से गुजरते हैं और मेरी दीवानगी को ताकते हैं मैं हूं कि बेबस हूं क्या बतायूं आकार में कौन छिपा हुआ है
anwar ji..rashim ji..hindu ji...mahender ji..priya ji..vishal ji ...shobha ji...viney ji..ranjana ji..aap sabhi ne post ko pada...us par apni tippni di...shukriya aap logon ka. apna sneh ese hi banaye rakhiyega. manvinder
17 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लिखा है आप ने ..धन्यवाद ..
bahut hi bhaw bheeni rachna hai,
mann me ek chah hoti hai,wahi rup chhupa hai.....
bahut badhiyaa likha hai
Man chanchal hota hai.
Instability is it's keen property.
Aapne man ki prakrati ka bahut hi
accha varnan kiya hai......
ब्लागजगत में आपका स्वागत है और हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में अपना अमूल्य योगदान दे.
स्वागत है इस इन्टरनेट की दुनिया में. आप की E-Guru Maya
padh kar maja aa gaya bahut achchha likhte hai aap
bhavpoorna
plese mujhe bhi padhiye
vishalvermaa@blogspot.com
कई बार सोचा है
देखूं नजरें गढ़ा कर
आकार में
कौन छिपा हुआ है
bahut sundar .
बहुत ही ख़ूबसूरत ख़्याल!
कभी चांद बनता है तो कभी सूरज
कई काफिले इधर से गुजरते हैं
और मेरी दीवानगी को ताकते हैं
मैं हूं कि बेबस हूं
क्या बतायूं
आकार में कौन छिपा हुआ है
बहुत सही लिखा है कौन है chipa हुआ ...
anwar ji..rashim ji..hindu ji...mahender ji..priya ji..vishal ji ...shobha ji...viney ji..ranjana ji..aap sabhi ne post ko pada...us par apni tippni di...shukriya aap logon ka. apna sneh ese hi banaye rakhiyega.
manvinder
स्वागत है। अच्छा लिखा आपने । नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
Dr. Noopur
भावभीनी कविता है आपकी । ब्लॉग जगत में स्वागत है ।
Excellent!
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
मनविंदर जी,
लख-लख बधाइयां।
अखबार की नौकरी के बाद भी समय निकालकर लिख लेती हैं।
आपको सलाम।
हरि जोशी
http://irdgird.blogspot.com
अच्छी रचना. लिखते रहिये.
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