शनिवार, 9 अगस्त 2008

एक कहानी एक खुशबु

आज फिर मौसम भीगा भीगा सा है
आज फिर उस महक ने मुझे इक पल को
रोक दिया उसी राह पर
वो महक,
हल्की बरसात के बाद हरियाली और मिटृटी
की सौंधी महक
आज फिर में उस रास्ते से गुजरी
जहां से तुम आगे निकल गये थे
मैं वहीं रह गयी थी अकेली सी
तुम्हारे आगे निकलने और मेरे अकेले रहने
के बीच बहुत कुछ बदला
लेकिन नहीं बदली तो महक
हरियाली और मिट्टी की सौंधी महक
ये ´सौंधी महक का अहसास` एक कहानी का हिस्सा हैं लेकिन वह कहानी अभी अधूरी है------ इस अधूरेपन में भी कहानी साफ हैं। अधूरेपन का अलग प्रकार का सुख।
मनविंदर भिम्बर

कोई टिप्पणी नहीं: