मेरे लिये जरूरी नहीं है
तुम्हारे सुर में सुर मिलायूं
तुम्हारी हां को स्वीकारूं
तुम्हारे तय किये निर्णय मानूं
तुम्हारे कंधे का सहारा लूं
तुम्हारी राह तकूं
क्योंकिअपने अंदर की स्वयंसिद्धा मैं पहचान गई हूं
तुम्हें भी जान गई हूं
मौका पड़े तो भरी सभा मेंदेख सकते हो मेरा चीर हरण
इक जरा सी बात परदे सकते हो जगलों की भटकन
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें